58 साल पहले 2 हजार चीनी सैनिकों पर भारी पड़े थे 120 भारतीय सैनिक, 1300 को मारकर 114 ने दी कुर्बानी
रिपोर्ट-संतोष कुमार यादव
18 नवंबर 1962 वह ऐतिहासिक दिन है जब देश के 120 जवानों ने रेजांगला पोस्ट पर 2 हजार चीनी सैनिकों से मोर्चा लिया और उन पर भारी पड़े। चीनी सैनिकों के पास भारी मात्रा में तोप और गोले थे, तो भारतीय सैनिकों के पास हौसले थे। सीमित संसाधनों के बावजूद 1300 चीनी सैनिकों को 120 भारतीय सैनिकों ने मौत के घाट उतार दिया। गौरतलब है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय 18 नवंबर को लद्दाख की रेजांगला पोस्ट पर तैनात सैनिकों को भोर में गोलाबारी से गूंज सुनाई दी। गोला-बारूद और तोप के साथ चीन के 2 हजार जवानों ने लद्दाख पर हमला कर दिया था।
उस समय उस चौकी पर कुमाऊ रेजीमेंट की चार्ली कंपनी तैनात थी, जिसकी अगुवाई मेजर शैतान सिंह कर रहे थे। यहां सभी सैनिक आखिरी सांस तक लड़ते रहे और चीन के 1,300 सैनिक मार गिराए। हलाकि 114 भारतीय जवानों ने भी देश की रक्षा में अपने प्राण गवां दिए। जो 6 जिंदा बचे थे उन्हें चीनी सैनिक युद्ध बंदी बनाकर ले गए थे लेकिन सभी बचकर निकल आए। इस कंपनी को 'वीर अहीर' कंपनी भी कहा जाता है। 13 कुमाऊं के 120 सैनिक हरियाणा राज्य के गुड़गांव, रेवाड़ी, नरनौल और महेंद्रगढ़ व राजस्थान के अलवर के रहने वाले थे। जिनमें ज्यादातर यादव थे। इस क्षेत्र को अहीरवाल क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है।
रेजांगला युद्ध की कहानियों पर जमी धूल हटाने की कोशिश
इतिहास के पन्नों में दर्ज रेजांगला युद्ध की कहानियों पर जमी धूल हटाने की एक कोशिश सुल्तानपुर में भी हो रही है। वीर जवानों की शहादत के चर्चे आने वाली पीढ़ियों के जुबां पर हो इसी धेय्य के साथ पेशे से शिक्षक संतोष यादव अमेठी एवं मंजीत यादव की अगुवाई में शहीद जवानों की याद में रेजांगला शौर्य दिवस समारोह विगत चार सालों से हो रहा है। रेवाड़ी और गुड़गांव में भी रेजांगला के वीरों की स्मृति में रेजांगला शौर्य दिवस धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन अन्य हिस्सों में इसकी गूंज नही सुनाई पड़ती है।
सर्वाधिक पदक इसी बटालियन के नाम

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