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Thursday, April 13, 2023

गरीबों, पिछड़ों,मजदूरों और महिलाओं के सच्चे मसीहा थे डॉ. भीम राव अम्बेडकर-रतीश कुमार

 

रिपोर्ट-डा०देवेन्द्र

चन्दौली शहाबगंज।बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर के 132जयंती की पूर्व संध्या पर शुक्रवार को शहाबगंज ब्लाक मुख्यालय स्थित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्थल विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया,जिसमें उपस्थित लोगों ने उनके तैलीय चित्र पर माल्यार्पण करने के बाद उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनके शिक्षा,सामाजिक,धार्मिक, आर्थिक,न्यायिक योगदान पर चर्चा की।चर्चा के दौरान समाजसेवी रतीश कुमार ने कहा कि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर आधुनिक भारत के निर्माता थे।आज के घुटन भरे सामाजिक राजनैतिक,धार्मिक,जाति भेदभाव आदि वातावरण में उनके विचार व सिद्धांत बहुत ही प्रासंगिक है।दरअसल वे एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था के हिमायती थे जिसमें राज्य सभी को समान राजनीतिक अवसर दे तथा धर्म जाति रंग तथा लिंग आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाय।उनका दृढ़ विश्वास था कि जब तक आर्थिक व सामाजिक असमानता समाप्त नहीं होगी तब तक जनतंत्र की स्थापना अपने वास्तविक स्वरूप को ग्रहण नहीं कर सकती हैं।दरअसल सामाजिक चेतना के अभाव में जनतंत्र आत्मविहीन हो जाता है।ऐसे में जब तक सामाजिक जनतंत्र स्थापित नहीं होता है। तब तक सामाजिक चेतना का विकास भी संभव नहीं हो पाता है।उनकी जनतांत्रिक व्यवस्था की कल्पना में नैतिकता और सामाजिकता दो प्रमुख मूल्य जिनकी प्रासंगिकता वर्तमान समय में बढ़ जाती है।बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की यह सोच थी कि महिलाओं की उन्नति तभी हो सकती है जब उन्हें घर परिवार समाज सभी जगह समान दर्जा और अवसर मिले शिक्षा और संपत्ति में अधिकार उन्हें सामाजिक बराबरी दिलाने में मददगार साबित होगा।इसके लिए उन्होंने देश के पहले कानून मंत्री के रूप में हिंदू समाज में क्रांतिकारी सुधार लाने के लिए हिंदू कोड बिल लोकसभा में पेश किया।पत्रकार विनोद कुमार सिंह ने कहा कि आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था में गरीबी, बेरोजगारी आय एवं संपत्ति में व्यापक असमानता,शिक्षा और अकुशल श्रम इत्यादि समस्याएं व्याप्त हैं।डॉक्टर अंबेडकर ने द प्रॉब्लम ऑफ रूपी:15 "ओरिजिन एंड इट्स सलूशन ,नामक अपनी रचना में विनिमय के माध्यम के रूप में भारतीय रुपए के विकास का परीक्षण किया और उपयुक्त मौद्रिक व्यवस्था के चयन की समस्या की व्याख्या की।आज के समय में जब भारतीय अर्थव्यवस्था मुद्रास्फीति की समस्या से दो-चार हो रही है तो ऐसे में उनके शोध के परिणाम न सिर्फ समस्याओं को समझने में महत्वपूर्ण हो सकते हैं बल्कि इसके समाधान को लेकर आगे का मार्ग भी प्रशस्त कर सकते हैं।

गोष्ठी में चर्चा परिचर्चा के दौरान पत्रकार देवेंद्र सिंह ने कहा कि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर समानता को लेकर दृढ़ संकल्पित थे उनका मानना था कि समानता का अधिकार धर्म और जाति के ऊपर प्रत्येक व्यक्ति को विकास के समान अवसर उपलब्ध कराना किसी भी समाज की प्रथम और अंतिम नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए,जो सामाजिक व्यवस्था विकास का समान अवसर उपलब्ध कराने में सफल नहीं है तो उस सामाजिक व्यवस्था को बदल देना चाहिए।उनका मानना था कि समाज में इस तरह का बदलाव आसान नहीं है। इसके लिए वर्षों तक संघर्ष करना पड़ता है।उनके यह विचार आज ना सिर्फ भारत में बल्कि विश्व के संदर्भ में भी प्रासंगिक है।

वही उनके शिक्षा को लेकर विचार पर चर्चा करते हुए सहायक अध्यापक केशरीनन्दन जायसवाल ने कहा कि डॉ बाबासाहेब अंबेडकर शिक्षा के महत्व को अच्छी तरह समझते थे उनका जन्म अछूत समझे जाने वाली जाति में हुआ था। जिसको लेकर उन्हें स्कूली शिक्षा के दौरान अनेक अपमानजनक वाकयों का सामना करना पड़ा था।उनका विश्वास था कि शिक्षा ही व्यक्ति में यह समझ विकसित कर सकती है,कि वह अन्य से अलग नहीं है।उसके भी समान अधिकार है उन्होंने एक ऐसे राज्य की परिकल्पना कि जहां संपूर्ण समाज शिक्षित हो वे मानते थे कि शिक्षा ही व्यक्ति को अंधविश्वास ,झूठ,आडंबर से दूर कर सकती है।शिक्षा का उद्देश्य लोगों में नैतिकता व जनकल्याण की भावना को विकसित करने का होना चाहिए। शिक्षा का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जो विकास के साथ-साथ चरित्र निर्माण में योगदान दे सके। शिक्षा के प्रसार में जातिगत भौगोलिक व आर्थिक असमानता बाधक न बन सके इसके लिए उन्होंने ने संविधान में मूल अधिकार के अनुच्छेद 21-Aके तहत शिक्षा के अधिकार का प्रावधान किया है। 

सुबास विश्वकर्मा ने कहा कि बाबा साहब ने समानता का अधिकार,स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार और संवैधानिक उपचार का अधिकार को मौलिक अधिकार में शामिल किया।पत्रकार मिथिलेश कुमार ने कहा कि बाबा साहब सिर्फ अछूतों के लिए नहीं बल्कि महिलाओं सहित संपूर्ण समाज के पुनर्निर्माण के लिए जीवन भर प्रयासरत रहे उन्होंने मजदूर वर्ग के कल्याण के लिए उल्लेखनीय कार्य किया पहले मजदूरों को प्रतिदिन 12से 14 घंटे काम करना पड़ता था उनके प्रयास से प्रतिदिन 8 घंटे काम करने का नियम पारित हुआ, इसके अलावा उनके प्रयासों से मजदूरों के लिए इंडियन ट्रेड यूनियन अधिनियम औद्योगिक विवाद अधिनियम तथा मुआवजा आदि से भी सुधार हुए।इस अवसर पर कृष्णकुमार संत,दशमी मौर्य, विनोद विश्वकर्मा, चन्द्रभान, सुधाकर,समसाद अंसारी, जितेंद्र,पंकज दुबे,अजय कुमार,कल्लू,घासी पाल,योगेश पत्रकार(छोटू),राजू, अजीत कुमार सहित आदि लोग उपस्थित रहे।



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