चन्दौली चकिया । स्थानीय बारीगांव सिकन्दरपुर मे चल रहे संगीतमय सात दिवसीय श्रीमद् भागवत् कथा के विश्राम दिवस की कथा पूर्व हवन आदि सम्पन्न हुआ। विश्राम दिवस की कथा श्रवण कराते हुए श्रीमद् भागवत् व श्री मानस मर्मज्ञ श्रद्धेय श्री अखिलानन्द जी महाराज ने भगवान कृष्ण के विवाह प्रसंग पर चर्चा करते हुए कहा कि रूक्मिणी जी लक्ष्मी स्वरूपा हैं जो नारायण का ही वरण करती हैं। रूक्मिणी विवाह मे शिशुपाल वर के रूप मे आता है लेकिन रूक्मिणी द्वारिकाधीश का ही वरण करती हैं। भगवान कृष्ण जब द्वारिकापुरी से विदर्भ देश के कुंडिनपुर आते हैं तो जीतेन्द्रीय बनकर आते हैं और शिशुपाल कामी बनकर आता है।लक्ष्मी की प्राप्ति कामी नही बल्कि जीतेन्द्रीय को होती है। सांसारिक जीवों के लिए लक्ष्मी नारायण की हैं अर्थात हमारी मां हैं यदि लक्ष्मी को यदि मां रूप मे हम रखते हैं तो लक्ष्मी कल्याणकारी व सुख प्रदान करने वाली होती हैं, शास्त्रों मे लक्ष्मी के तीन स्वरूप बताए गये हैं। पहला लक्ष्मी दूसरा महालक्ष्मी व तीसरी अलक्ष्मी। लक्ष्मी स्वरूपा वो धन होता है जो धर्म व अधर्म दोनों प्रकार से होता है जो उसी मे खर्च होता है। महालक्ष्मी स्वरूपा वो धन केवल धर्म से आता है और धर्म मे ही खर्च हता है। अलक्ष्मी धन उसे कहते हैं जो केवल अधर्म से आता हैजो अधर्म मे ही खर्च होता है।कहने का आशय है कि हम जिस प्रकार धन प्राप्त करते हैं वह धन उसी कार्य मे खर्च होता है। इसलिए मानव को सदैव ध्यान रखना चाहिए की वह धर्म पूर्वक ही धन ग्रहण करें।भगवान श्री कृष्ण विवाह पर उन्होंने ने कहाँ की द्वारिकाधीश का विवाह रूक्मिणी जी के साथ साथ जामवंती ,सत्यभामा,लक्ष्मणा, कालिन्दी के विवाह पर विशेष रूप से प्रकाश डाला। महाराज जी ने कहाँ कि भगवान कृष्णा का ग्यारह सौ आठ विवाह सम्पन्न हुआ। सुदामा चरित्र पर उन्होंने कहा कि भगवान भक्त के आधीन होते हैं सुदामा जी बाल सखा भी है और परम भक्त भी। जीव यदि निष्काम भक्ति करता है तो भगवान को प्रिय हो जाता है। जो अनन्य भाव से भक्ति करता है तो भगवान उसके सुखदुख के साथी हओ जाते है। सुदामा की दशा कओ देख कर अपनी करूणा द्वारा अनुग्रह करके अपने को धन्य करते है। इसीलिए सभी मार्गों मे भक्ति मार्ग महाश्रेष्ठ बताया गया है। सुदामा जी सदैव धर्म का पालन करते हुए भगवान की आराधना करते है और ऐसा मानते है कि भगवान जैसे रखते है वैसे रहते है। यदि जीव को जीवन मे दुख हो तो उसे भगवान के शरणागत हो जाना चाहिए जबकि सुख मे भगवान के कृपा की अनुभूति करनी चाहिए। कथा के अंत मे परीक्षित मोक्ष पर बोलते हुए कहा कि श्रीमद् भागवत् महापुराण भगवान की वांगमयी मूर्ति है । शुकदेव जी महाराज धर्म सम्राट महाराज परीक्षित को भागवतामृत का रसपान कराते हैं। कथा का विश्राम दिवस था महाराज परीक्षित के ह्रृदय से दिव्य तेज निकल कर आकाश मे विलीन हो गया।मौके पर भैयालाल पाठक, अशोक पाण्डेय, आलोक पाण्डेय, हनुमान पाठक, पूजा तिवारी, चन्द्रशेखर पाठक, हलचल सिंह, राहुल पाठक,मनीष पांडेय, संतोष पाठक, संदीप पटेल, विजय यादव, रितु दूबे, प्रियांशु पाठक,शिवम,भीम दूबे, संजय, वंशराज मिश्रा, रामप्रकाश पाण्डेय, आराधना, साधना, ऊषा तिवारी आदि मौजूद रहे। मुख्य यजमान बृजभूषण पाठक व सविता पाठक, भानू पाठक व मनोरमा पाठक रहें।
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