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Sunday, September 25, 2022

सब्जियों की उन्नत क़िस्मों को किसानों तक पहुंचाने के लिए तकनीकी प्रसार दिवस का आयोजन

रिपोर्ट-त्रिपुरारी यादव

वाराणसी रोहनिया-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ तुषार कांति बेहेरा के दिशा निर्देश मे संस्थान द्वारा विकसित खरीफ सब्जियों की उन्नत किस्मों को पब्लिक प्राइवेट पार्टनर्शिप (पी.पी.पी.) द्वारा किसानों तक पहुंचाने के लिए संस्थान एवं ज़ोनल तकनीकी प्रबंधन इकाई के सौजन्य से तृतीय तकनीकी प्रसार दिवस का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में संस्थान द्वारा भिण्डी, लौकी, कद्दू, करेला, ककड़ी, खरबूजा, टिण्डा और करम साग की उन्नत किस्मों को बढ़ावा देने के लिए प्रदर्शित किया गया। इस कार्यक्रम में निजी क्षेत्र की 10 अग्रणी बीज कंपनियों जैसे सीड्स वर्कस इण्डिया प्रा. लि., ईगल सीड्स लिमिटेड, वचन सीड्स, जेनिथ हाइब्रिड सीड्स, इस्ट-वेस्ट सीड्स, रैलिस इण्डिया लिमिटेड, श्यामल एग्रो लिमिटेड, नाथ बायो-जीन्स इण्डिया लिमिटेड आदि के 25 प्रतिनिधियों ने संस्थान के अनुसंधान प्रक्षेत्र पर सब्जियों की प्रदर्शित किस्मों को सराहा तथा उनकी व्यावसायिक उपयोगिता का मूल्यांकन किया। सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए संस्थान के कार्यवाहक निदेशक एवं ज़ोनल तकनीकी प्रबंधन इकाई के प्रभारी डॉ प्रभाकर मोहन सिंह  ने संस्थान द्वारा विकसित उन्नत किस्मों के बीजों की किसानों को समुचित उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए संस्थान के संकल्प को दोहराया और इस संकल्प की पूर्ति के लिए निजी क्षेत्र की बीज कंपनियों से सुचारु एवं क्रियाशील अनुबंध करने हेतु विचार विमर्ष किया। डॉ सिंह ने बताया कि संस्थान द्वारा संकर किस्मों के स्थानांतरण अनुबंध के अन्तर्गत कम्पनियों को किस्मों के मूल्यांकन के लिये 100 मी2 क्षेत्र के लिये सैम्पल बीज भी उपलब्ध कराया जाता है। कार्यक्रम के समन्वयक तथा संस्थान तकनीकी प्रबंधन इकाई के प्रभारी डॉ शैलेश कुमार तिवारी ने बताया की संस्थान द्वारा पी.पी.पी. मोड़ से अब तक लगभग 79 अनुबंध निजी बीज कंपनियों से किए जा चुके हैं। इन अनुबंधों के विभिन्न पहलुओं से कंपनियों के प्रतिनिधियों को अवगत कराया गया। इस अनुबंध के अन्तर्गत चिन्हित बीज उत्पादक कम्पनियों को संस्थान द्वारा प्राप्त किस्मों के नाम को बदलने की अनुमति नहीं होती। कार्यक्रम में विभिन्न विभागाध्यक्ष एवं अन्य संबन्धित वैज्ञानिकगण उपस्थित थे। कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ शैलेश कुमार तिवारी ने किया।



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