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Friday, October 21, 2022

"आखर साहित्य" के अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में कवियों ने बांधा समा

मुख्य अतिथि प्रोफेसर मंगला कपूर को आयोजक मंडल ने स्मृति चिन्ह एवम अंगवस्त्रम देकर किया सम्मानित

चंदौली चकिया बाल्मीकि सेवा संस्थान देवखत नौगढ़ की साहित्यिक इकाई आखर साहित्य चकिया के तरफ से बीती रात काली जी के पोखरे पर अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें देर रात तक कवियों के काव्य पाठ से श्रोता काव्य लहरियों में गोता लगाते रहे। काव्य पाठ शुरू होने से पहले आयोजकों ने मां सरस्वती जी के तैल्य चित्र पर माल्यार्पण कर व दीप जलाकर तथा मुख्य अतिथि प्रोफेसर मंगला कपूर को स्मृति चिन्ह व अंग वस्त्र भेंट कर कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। कार्यक्रम के शुरू में कवित्री रुचि द्विवेदी ने सरस्वती वंदना हे शारदा, हे सरस्वती, हे निरंजना, सुर को स्वर साधिका प्रस्तुत कर कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। 

सुरेश अकेला ने कहा कि दर्द को गीतों में गुनगुनाता रहूं, हर घड़ी प्यार के गीत गाता रहूं। जय श्री राय ने अपने पाठ में कहा कि मनुष्य के जिंदगी में पल-पल क्षण में बड़े-बड़े पन्ने की कहानी होनी चाहिए। मऊ से पधारे पंकज प्रखर ने कहा कि जब भी कोई जिक्र करेगा भारत के बलिदान का कह कर देश भक्ति के भाव को जगाया।वही आयोजक टीम के मनोज मधुर ने कहा कि मुकद्दर चोट दे चोट मैं फौलाद बन जाऊं। हास्य के बड़े कवि बादशाह प्रेमी ने लोगों को हंसाया और कहा कि बढ़ती आबादी के परमाणु बम। गाजीपुर से आए मिथिलेश गहमरी ने एक बार पुनः देशभक्ति जगाते हुए कहा कि कसम तुमको तुम मां के सम्मान को रख लेना कह कर खूब तालियां बटोरी।फैजाबाद से आई रुचि दुबे ने अगले क्रम में कहा कि जीत कर हीय हार कर आ गए, लोग अन्याय को मार कर आ गए। वहीं आखर सहित के अध्यक्ष स्वतंत्र कुमार श्रीवास्तव नवल ने भोजपुरी में अपनी रचना को उकेरा जिसमें उन्होंने 

कहा कि जे विधना रचिहैं तोहके गोरिया तोहरी बन जइबै,रंगवा बन जाब महावर कै अखिया अजना बन जइबै। फिर प्रयागराज से पधारे हास्य के बड़े कवि बिहारी लाल अंबर ने देर तक सबको हंसाया और कहा कि दिल में सजा कर प्यार का गमला चली गई।मंच का सफल संचालन कर रहे वरिष्ठ कवि डॉक्टर ईश्वर चंद्र त्रिपाठी ने कहा कि जीत जाता हूं, हार जाता हूं,रोज करने शिकार जाता हूं, देके कुंडल कवच भिखारी को मौत लेकर जाता हूं।मंच की अध्यक्षता कर रहे भोजपुरी के सशक्त हस्ताक्षर व व्यंगकार वरिष्ठ कवि बालेदिन बेसहारा ने कहा कि देखत देखत लगल कि गांव शहर का बाप हो गईल सामयिक रचना सामने लाकर सबको सोचने पर विवश कर दिया।इस मौके पर आखर साहित्य के संरक्षक अवध बिहारी मिश्र सहित समाजसेवी गीता शुक्ला,कृष्णानन्द द्विवेदी,विजयानन्द द्विवेदी,शंकर यादव सुभाष खरवार,विनोद सिंह गणित,रमेश यादव, भैयालाल सिंह एड०,राजेश तिवारी एड०कैलाश जायसवाल सहित सैकड़ों लोग मौजूद रहे।



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