रिपोर्ट -त्रिपुरारी यादव
वाराणसी। मानव को मानव से प्रेम हो जाए तो भाषा कोई बाधक नहीं होती क्योंकि प्रेम से बोला गया कोई भी शब्द चाहे किसी भी भाषा में हो भक्त समझ कर आनंद में रहते हैं ,एक दूसरे को सम्मान देते हुए संसार में जीवन यापन करते हैं ,यही सच्चे संत की श्रेणी में आते हैं। संत किसी भेष भूषा या किसी भाषा का नाम नहीं है। संत हर भाषा ,भेष और जाति, वर्ण से प्रेम करता है।उक्त उद्गार केंद्रीय निरंकारी ज्ञान प्रचारक जम्मू से पधारे डॉक्टर विनोद साहिब जी ने रविवार को संत निरंकारी सत्संग भवन मलदहिया में आयोजित विशाल अंग्रेजी संत समागम को संबोधित करते हुए व्यक्त किया।उन्होंने कहा कि सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ब्रह्म का ज्ञान देने के बाद सभी को गृहस्थ में रहकर भक्ति करना सीखा रही हैं, क्योंकि संसार से भागना तो आसान है परंतु गृहस्थ में रहते हुए पारिवारिक परेशानियों और संसार के हर रिश्ते को निभाते हुए भक्ति करना बहुत कठिन है।निरंकारी मिशन आज हर एक आयु के लोगों चाहे बच्चे हो युवा हों या बुजुर्ग हों सभी के लिए संगतों की व्यवस्था देकर सभी को भक्ति से जोड़ने का प्रयास करता है। इसका उद्देश्य यही है कि संसार में अमन चैन और भाईचारा कायम हो सके।उन्होंने कहा कि भक्ति में गुरु के वचनों को अमल करना अति आवश्यक है गुरु के ना को ना समझना जरूरी है। गुरु जो कहे उसे बिना किसी ना नुकर के सही तरह से मान लेने में भक्तों की भलाई होती है । भक्त संसार से ज्यादा गुरु के बताए रास्ते को अपनाते हैं तो ही सच्चे गुरुसिख बन पाते हैं।समागम में वाराणसी के अलावा गाजीपुर ,चंदौली, सोनभद्र ,मिर्जापुर आदि जनपदों से आए भक्तों ने गीतों- विचारों एवं कविताओं के माध्यम से मिशन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।समागम में उपस्थित भक्तों का आभार वाराणसी जोन के जोनल इंचार्ज सिद्धार्थ शंकर सिंह ने व्यक्त किया। समागम की सारी व्यवस्था सेवादल के अधिकारियों के देखरेख में सेवा दल के जवानों एवं बहनों ने बखूबी निभाया।
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