✍️श्याम सिंह पंवार
लखनऊ/कानपुर भारत जैसे विविधताओं वाले देश में त्योहारों का उद्देश्य खुशियां बांटना और सामाजिक सद्भाव बढ़ाना होता है।
भारत अपनी 'वसुधैव कुटुंबकम' (पूरी दुनिया एक परिवार है) की अवधारणा के लिए विश्व भर में जाना जाता है। लेकिन हाल के वर्षों में कुछ अराजक समूहों द्वारा क्रिसमस, वेलेंटाइन- डे...जैसे वैश्विक अनेक त्योहारों का विरोध करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। यह न केवल हमारी सामाजिक एकता के लिए चिंताजनक है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की उदार छवि को भी प्रभावित करता है।
किसी भी त्योहार का विरोध करना अक्सर संकुचित विचारधारा का परिणाम होता है। त्योहार किसी धर्म विशेष तक सीमित होने से पहले मानवीय खुशियों और मिलन का प्रतीक होते हैं। जब हम किसी उत्सव का विरोध करते हैं, तो हम अनजाने में अपने समाज में दीवारें खड़ी कर रहे होते हैं। एक प्रगतिशील समाज वही है जो अपनी संस्कृति पर गर्व करते हुए दूसरे धर्मो की मान्यताओं का सम्मान करना जानता हो।
वैश्विक स्तर की बात करें तो, 'जैसा करोगे, वैसा भरोगे' की कहावत सही दिखने लगेगी। क्योंकि आज की दुनिया "ग्लोबल विलेज" है। हम जो कुछ भी अपने देश की सीमाओं के भीतर करते हैं, विरोध जताकर अराजकता के नजारे पैदा करते हैं, उन नजारों को पूरी दुनिया देख रही होती है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि लाखों की संख्या में भारतीय लोग, विदेशों (जैसे अमेरिका, अरब, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, रूस...आदि।) में रहते हैं और वहां अपने त्योहार—दीवाली, होली और गणेश चतुर्थी—धूमधाम से मनाते हैं। ऐसे में यदि हम अपने यहाँ दूसरों धर्मों के त्योहारों का विरोध करेंगे, तो हम उन देशों को भी सोचने पर विवश कर 'विरोध करने का अधिकार दे रहे हैं।' अर्थात यदि विदेशी लोग भी इसी संकुचित सोच को अपना लें और वहां हिंदू त्योहारों पर रोक या विरोध शुरू कर देंगे तो इसका खामियाजा हमारे अपने भाइयों और बहनों को भुगतना पड़ेगा।
भारत की खूबसूरती इसी बात में है कि यहाँ ईद की सेवइयां, दीवाली के दीये, बैसाखी पर मस्ती और क्रिसमस का कैरल एक साथ सुनाई देते हैं। अतः त्योहारों को धर्म के चश्मे से देखने के बजाय, उन्हें भाईचारे के अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए।
हमें यह समझने की आवश्यकता है कि सहिष्णुता और सम्मान दोनों तरफ से चलते हैं। यदि हम चाहते हैं कि विश्व स्तर पर हमारी संस्कृति और धर्म का सम्मान हो, तो हमें भी अपने देश में हर धर्म के प्रति उदारता दिखानी होगी, उनका सम्मान करना होगा। विरोध की राजनीति अंततः समाज को खोखला ही करती है। जैसा कि वर्तमान में देखने को मिल रहा है।
"सच्चा धर्म वही है जो जोड़ना सिखाए, तोड़ना नहीं।"

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