रिपोर्ट-डा०देवेंद्र
आजमगढ़- (UP) विद्यालय का नवनिर्मित गेट गिरने से दो बच्चों की मौत के मामले में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सख्ती के बाद मृत बच्चों के परिवार को एक एक लाख रुपये का मुवावजा उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अभिभावकों के खाते में ट्रांसफर किया गया। मामला आजमगढ़ के हसन डीह प्राथमिक विद्यालय का है। जहाँ विद्यालय के गेट पर सोहेल उम्र (7)बर्ष और शिफा खेल रहे थे।घटिया निर्माण सामाग्री से निर्माण के कारण गेट बच्चों के ऊपर गिर गया और दोनों बच्चे गेट में दब गए जिनकी घटना स्थल पर दर्दनाक मौत है गई। पूरे मामले की शिकायत Human Right C W A के चेयरमैन योगेन्द्र कुमार सिंह (योगी) ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग नई दिल्ली में किया था। आयोग ने मामले को संज्ञान में लेते हुए मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 18 (ए)(i) के तहत प्रमुख सचिव उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर मामले में रिपोर्ट तलब किया। आयोग ने सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि दो मृत बच्चे अल्ताभ हुसैन के पुत्र सोहेल और उसकी पोती शिफा के परिजनों को एक एक लाख रुपये की मुवावजे का भुगतान क्यों नही किया गया। आयोग ने जिला बेसिक शिक्षा आधिकारी के ऊपर विभागीय कार्यवाई करने का जिलाधिकारी को आदेश दिया। आयोग ने अपने आदेश में कहा कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकार स्कूल गेट निर्माण की गुणवत्ता का निष्पक्ष जांच करने में विफल रहे। जिलाधिकारी आजमगढ़ से 24.10.2019 को प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार आयोग को बताया गया कि अशोक कुमार चौबे प्रधानाध्यापक (अब सेवानिवृत्त) और पंकज सिंह बेसिक शिक्षा अधिकारी के खिलाफ कार्यवाई की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रत्येक पर 74220/- रुपये का वसूली का आदेश जारी किया गया है और उन लोगो के खिलाफ विभागीय कार्यवाई का आदेश भी जारी किया गया है। आयोग ने जिलाधिकारी से दोनों मृत बच्चों के परिवार को दिए गए एक एक लाख रुपये का साक्ष्य प्रस्तुत करने को कहा।प्रत्युत्तर में जिला मजिस्ट्रेड का 30.07.2020 को एक रिपोर्ट प्राप्त हुई। रिपोर्ट में उल्लेख किया गया था कि प्रभारी अधिकारी के निर्देश पर एक लाख रुपये की आर्थिक राहत की स्वीकृति के लिए मामला जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के पास भेजा गया था। मामले की गहनता पूर्वक जांच के बाद जिलाधिकारी ने कोई मुवावजा देना उचित नहीं समझा था। जिलाधिकारी के रिपोर्ट को दरकिनार करते हुए आयोग ने अपने आदेश को बरकरार रखा।आयोग ने अपने आदेश में कहा प्रधानाध्यापक और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के ऊपर विभागीय करवाई की गई थी और इन तथ्यों के वावजूद विभाग ने मृतक बच्चों के परिजनों को मुवावजा नहीं देने का फैसला किया है। जिलाधिकारी के इस गैर जिम्मेदराना रिपोर्ट पर अयोग ने तल्ख रवैये अपनाते हुए कहा कि पिता ने अपने बच्चों को खो दिया यह चिंता ही नही बहुत बड़ी चिंता का विषय है। आयोग के मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 18 के तहत आदेश के बाबजूद शासन और जिला प्रशासन द्वरा कोई कदम नही उठाया गया। आयोग ने मामले पर कड़ा रुख अख्तियार करते हुए तत्काल निर्देश जारी किया और अपने निर्देश में प्रमुख सचिव को निर्देशित किया कि चार सप्ताह में मृत बच्चो के परिवार को मुवावजे का भुगतान कर भुगतान के साक्ष्य और प्रमाण प्रस्तुत करें। आयोग के निर्देश के वावजूद भी साक्ष्य प्रस्तुत नही किया गया । आयोग ने नाराजगी ब्यक्त करते हुए कहा कि अधिकारियों के गैर जिम्मेदराना प्रतिक्रियात्मक रवैये से ऐसा प्रतीत होता है कि उनके लियूए दो मासूम बच्चों कि मौत का कोई मतलब नही है। उन्हें मानवाधिकार उलंघन की कोई परवाह नही है और आयोग के निर्देशों का कोई सम्मान नही है। आयोग ने कहा कि अनुशंसित मुवावजे की राशि बहुत बड़ी नही है लेकिन यह मृत बच्चों के परिवार के आंसू पोछने में सहायक है।आयोग ने प्रमुख सचिव को अंतिम अनुस्मारक जारी करते हुए कड़ा निर्देश जारी करते हुए कहा कि मृत बच्चो के परिवार को मुवावजा भुगतान कर चार सप्ताह में भुगतान प्रमाण पत्र आयोग के सक्षम प्रस्तुत करे। यदि निर्धारित समय के भीतर रिपोर्ट प्राप्त नहीं होती है तो आयोग उनके व्यक्तिगत उपस्थित होने के लिए मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 13 के तहत जबरदस्ती प्रक्रिया लागू करने के लिए बाध्य किया जाएगा। आयोग के शख्ती के कारण दिनांक 18.08.2021 को जिलाधिकारी ने पत्र भेजकर आयोग को बताया कि मृत बच्चो के परिजनों को एक एक लाख रुपये का भुगतान किया गया है और भुगतान का साक्ष्य भी प्रस्तुत किया गया।

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