रिपोर्ट-त्रिपुरारी यादव
वाराणसी लंका- रश्मि नगर लंका में चल रहे श्रीमद्भागवत रस महोत्सव में व्यासपीठ से कथावाचक डॉ पुण्डरीक ने इस महापुराण के महत्व बताने के साथ के साथ ही बताया कि श्रीमद्भागवत महापुराण सभी ग्रंथों का सार है। भागवतपुराण को मुक्ति ग्रंथ कहा गया है। इसकी कथा सुनना और सुनाना दोनों ही मुक्तिदायिनी हैं और आत्मा को मुक्ति का मार्ग दिखाती है। उन्होंने बताया कि यदि कोई व्यक्ति किसी तीसरे व्यक्ति को कथा सुनने के लिए प्रेरित करता है तो पहले व्यक्ति को इस बात का भी पूरा फल मिलता है।कथा का संयोजन अखिल भारतीय ब्राह्मण विद्वत परिषद न्यास के अध्यक्ष शप्रमोद कुमार मिश्र और मंजू मिश्र कर रहे हैं।पंचम दिवस की कथा श्री में शुकदेव जी ने मैत्रेय विदुर संवाद के माध्यम से भागवत कथा का विस्तार पूर्वक वर्णन किया ।सृष्टि के क्रम का वर्णन करते हुए भगवान वराह की कथा बताए। वराह का मतलब है संतोष ।संतोष से ही लोभ पर विजय प्राप्त किया जा सकता है ।इसके बाद भगवान कपिल की कथा सुनाई ।नवधा भक्ति का वर्णन चतुर्थ स्कंध में अधिकार वर्णन श्रोता कैसा होना चाहिए इसकी बात बताई ।भाव शुद्धि सबसे बड़ा तप है। चतुर्थ स्कंध में सती का चरित्र आगे मनु जी के पुत्र उत्तानपाद की कथा जिसमें ध्रुव चरित्र का वर्णन और आगे भगवान पृथु की कथा सुनाई । भूगोल और खगोल का वर्णन स्कंध में नाम और रूप की महिमा बताई।लीला और धाम की चर्चा और अजामिल की कथा से नाम की महिमा का वर्णन किया सातवें स्कंध में प्रहलाद की चरित्र चरित्र कथा सुनायी।इस अवसर पर मुख्य रूप से प्रोफेसर रामचंद्र पांडेय, प्रो. राम नारायण द्विवेदी , प्रो. विनय पांडेय,पं हीरालाल द्विवेदी , अन्नपूर्णा मिश्रा, योगी विजय मिश्रा , पं दीपक उपाध्याय , भूपेन्द्र सिंह रिण्टू, रत्नेश मिश्रा , अद्वैत मिश्रा , आराध्या मिश्रा रहे।
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