लखनऊ उ०प्र० भाकपा (माले) ने आशा वर्कर यूनियन के आह्वान पर आशाकर्मियों की विगत एक सप्ताह से जारी प्रदेशव्यापी हड़ताल और 23 दिसंबर (मंगलवार) को होनेवाले उनके विधानसभा (लखनऊ) मार्च का पुरजोर समर्थन किया है। पार्टी ने उनकी न्यायपूर्ण मांगों के प्रति योगी सरकार की अनदेखी और संवादहीनता की आलोचना की है।
माले के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने सोमवार को यहां जारी बयान में कहा कि श्रमिकों के प्रति भाजपा और उसकी सरकारों का रुख बेहद अलोकतांत्रिक व प्रतिगामी है। एक तरफ उसकी केंद्र सरकार चार लेबर कोड लागू कर श्रमिकों को कारपोरेट का गुलाम बनाना चाहती है और 'विकसित भारत - जी राम जी' कानून के जरिये मनरेगा अधिनियम की हत्या कर ग्रामीण गरीबों से रोजगार का अधिकार छीन रही है, वहीं प्रदेश की योगी सरकार एस्मा जैसा काला कानून लागू कर मजदूरों-कर्मचारियों के हड़ताल के लोकतांत्रिक अधिकार पर छह महीने का प्रतिबंध लगाती है।
माले नेता ने कहा कि भाजपा सरकार महिला सशक्तिकरण को लेकर डींगें हांकती है। प्रदेश में आशाकर्मी महिलाएं लंबे समय से संघर्षरत हैं। उनका काम स्थायी प्रकृति का है, लिहाजा वे खुद को सरकारी कर्मचारी घोषित कर नियमानुसार न्यूनतम वेतन देने, ऐसा होने तक मानदेय बढ़ाने व बकाया पारिश्रमिक का भुगतान करने, उत्पीड़न रोकने और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की मांग कर रही हैं। लेकिन सरकार इसे लगातार अनसुना कर रही है। जबकि संसद (लोकसभा) के जारी शीतकालीन सत्र में भी आशाओं का मानदेय बढ़ाने की मांग उठी है।
माले राज्य सचिव ने कहा कि प्रदेश सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं दरवाजे पर उपलब्ध कराने वाली आशा कर्मियों के प्रति अपने दृष्टिकोण में बदलाव करे और उनकी लंबित मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करे।

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